जगदलपुर । भाजपा ने 55245 मतों से बस्तर लोकसभा की सीट कांग्रेस से छीन ली है ,और पूर्व मंत्री और 6 बार के विधायक कवासी लखमा कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में यह चुनाव हार चुके हैं ।
प्रदेश में भी बीजेपी ने अपना प्रदर्शन बेहतर किया है और पिछली बार की तुलना में अपनी सीटें बढ़ाने में सफल हुई है।
परन्तु बस्तर लोकसभा पर दृष्टि डालें तो 55 हजार से ज्यादा मतों से जीतने के बाद यहां बीजेपी का प्रदर्शन विधानसभावार बेहतर तो नहीं कहा जा सकता अपितु यह बीजेपी के लिए चिंता का विषय होना चाहिए ।
विधानसभा चुनाव में जिन बस्तर लोकसभा की विधानसभाओं कांग्रेस ने जीत हासिल की थी कोंटा को छोड़कर कांग्रेस का प्रदर्शन सभी विधानसभा में बेहतर दिखाई दे रहा है।जबकि बीजेपी का विधानसभा वार प्रदर्शन विधानसभा चुनाव की तुलना में लोकसभा में निराशाजनक कहा जा सकता है।
कोंडागांव विधानसभा से बीजेपी को मात्र 4094 की बढ़त मिली जबकि विधानसभा में यह बढ़त 20 हजार के लगभग थी,वहीं नारायणपुर में बीजेपी ने 4308 की मामूली बढ़त हासिल की जबकि विधानसभा में यहां भी बीजेपी की बढ़त 20 हजार से ज्यादा की थी।नारायणपुर विधानसभा से सटे बस्तर विधानसभा में तो कांग्रेस ने अपना प्रदर्शन और बेहतर करते हुए 8757 की बढ़त ली जबकि विधानसभा में कांग्रेस की बढ़त 6 हजार के लगभग की थी ।
दंतेवाड़ा विधानसभा में भाजपा ने 17 हजार मतों से जीती थी जबकि लोकसभा में यह बढ़त 12884 की ही रह गई ,जिसमें 8 हजार से ज्यादा की बढ़त केवल दंतेवाड़ा मंडल की बताई जा रही है ।
मजे की बात यह है कि दंतेवाड़ा विधानसभा में बीजेपी के 7 मंडल हैं ,जिसमें से 6 मंडल में केवल 4 हजार की मामूली बढ़त बीजेपी हासिल कर पाई।
बात करें बीजापुर विधानसभा की तो वहां बीजेपी का प्रदर्शन और बदतर हुआ है ,बीजापुर बीजेपी संगठन में प्रत्याशी को लेकर बेहद नाराजगी थी जिसका असर परिणाम में देखने को मिला ,जहां विधानसभा में बीजेपी मात्र 3 हजार से हारी थी वहीं लोकसभा में कांग्रेस ने यहां लगभग दोगुने वोट लेकर 6337 मत हासिल कर लिए ।
बीजापुर में बीजेपी संगठन और नेताओं की कार्यप्रणाली को लेकर आम जनता में व्याप्त नाराजगी का असर लगातार दिखाई दे रहा है।
इसी तरह चित्रकोट विधानसभा में लोकसभा चुनाव के दौरान शक्ति के दो केंद्र बनाना भाजपा को भारी पड़ा जिससे विधानसभा के मुकाबले मामूली नुकसान बीजेपी को दिखाई दिया है ,जहां बीजेपी ने 7502 की बढ़त हासिल हुई जबकि विधानसभा में यह आंकड़ा 8 हजार से ज्यादा का था।
वहीं कोंटा विधानसभा में सीपीआई के प्रत्याशी ने जमकर वोट खींचा जिसका फायदा बीजेपी को और नुकसान कांग्रेस को होता दिखा ,इस विधानसभा से भाजपा ने 3798 की बढ़त हासिल की ।यदि यहां सीपीआई ने बड़ी मात्रा में वोट हासिल नहीं किए तो लड़ाई कांटे की हो सकती थी।
कुल मिलाकर विधानसभा वार बीजेपी का प्रदर्शन खराब माना जा सकता है ,क्योंकि कांग्रेस ने बस्तर लोकसभा में प्रत्याशी घोषित करने में काफी समय लगा दिया था ,जबकि बीजेपी ने 2 महीने पहले ही प्रत्याशी की घोषणा कर दी थी ,और प्रचार शुरू कर दिया था।
वहीं कवासी लखमा को पर्याप्त समय नहीं मिल पाया उसके बावजूद भी उन्होंने नारायणपुर ,और कोंडागांव जैसे हॉट सीट पर कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर करते हुए विधानसभा में हुए बड़े गड्ढे को पाटने में कामयाबी हासिल की ।भाजपा की लाज जगदलपुर विधानसभा ने बचाई जहां बीजेपी ने 36946 की ऐतिहासिक बढ़त लेकर कांग्रेस की उम्मीदों को पूरी तरह खत्म कर दिया था। विधानसभा की तुलना में यहां बीजेपी ने 7 हजार से ज्यादा की बढ़त हासिल की ।
देर से प्रचार शुरू करने के बाद भी कांग्रेस ने ग्रामीण क्षेत्रों में शानदार प्रदर्शन किया ,जबकि बीजेपी ने नगरीय और कस्बाई क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन किया ।
प्रधानमंत्री मोदी के आभामंडल और प्रदेश सरकार की तमाम योजनाओं के बाद मामूली बढ़त ,चिंता का विषय
बीजेपी को इसलिए भी बस्तर लोकसभा को लेकर चिंता करनी चाहिए क्योंकि यहां बीजेपी की सरकार बने लगभग 4 महीने हो चुके हैं ,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता ,महतारी वंदन का पैसे महिलाओं के खाते में जा रहे हैं ,धान का समर्थन मूल्य बढ़ा दिया गया है, और तेंदू पत्ता की मानक बोरा खरीदी भी ₹ 5500 से कर दी गई है और भी ढेरों योजनाएं चल रही हैं ।उसके बाद भी अगर मतदाता कांग्रेस के पक्ष में वह भी उन विधानसभाओं में जहां बीजेपी के विधायक, मंत्री और राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारियों के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया हो,मतदान कर रहे है तो, यह जनता का भाजपा के नेताओं को सीधा संदेश है कि उन्हें उनकी कार्यप्रणाली पसंद नहीं आ रही है।इसका एक कारण यह भी है कि सत्ता मिलने के बाद भाजपा के निष्ठावान कार्यकर्ताओं का एक वर्ग ठगा सा महसूस कर रहा है क्योंकि चुनाव जीतने वाले अधिकांश नेताओं के इर्दगिर्द फिर से व्यापारी और ठेकेदारों का जमघट दिखाई दे रहा है।
सत्ता मिलते ही कार्यकर्ताओं की उपेक्षा
प्रदेश के भाजपा नेताओं में एक समस्या सामान्य रूप से देखी गई है कि,इनको सत्ता की शक्ति मिलते ही ,सबसे पहले यह नेता अपने कार्यकर्ताओं से संबंध खत्म कर लेते हैं ।
चुनाव से पहले जिन्हें देवतुल्य कार्यकर्ता कहते हैं उन्हें बाद में पहचानने से भी इनकार कर देते हैं या अपनी भाव भंगिमा ऐसी रखते है कि सामान्य कार्यकर्ता उनसे बात करने में डर महसूस करे।
नाम न छापने की शर्त पर एक बीजेपी कार्यकर्ता ने बताया कि यहां के नेता अपने प्रवास को इतना अधिक गुप्त रखते हैं कि क्षेत्र में उनके आनेजाने की खबर उन्हें अखबारों के माध्यम से मिलती है।
एक अन्य कार्यकर्ता ने बताया कि बीजेपी नेताओं को इस डर से कार्यकर्ता से दूरी बना लेते हैं कि 5 साल उनके लिए मजदूर की तरह कार्य करने वाला कार्यकर्ता ,कहीं कुछ काम न मांग ले ।
बरहाल जीत की खुशी में मदमस्त बीजेपी को बस्तर लोकसभा परिणाम पर गहराई से आत्मचिंतन की आवश्यकता है ,चुंकी प्रदेश जनता का मूड अब वैसे नज़र नहीं आ रहा जो 2013 में हुआ करता था ,प्रदेश की जनता अब सरकार और नेताओं का व्यक्तिगत मूल्यांकन कर रही है।
संदीप पांडे, ब्यूरो चीफ, विप्र एक्सप्रेस
लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं